अंकन (लिपि)

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लेख सूचना
अंकन (लिपि)
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 1
पृष्ठ संख्या 06
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक डॉ. मोहन लाल तिवारी

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अंकन (लिपि) को प्राय: 'क्यूनिफ़ार्म लिपि' या 'कीलाक्षर लिपि' भी कहते हैं। छठी-सातवीं सदी ई.पू. से लगभग एक हजार वर्षों तक ईरान में किसी-न-किसी रूप में इसका प्रचलन रहा। प्राचीन फ़ारसी या अबेस्ता के अलावा मध्ययुगीन फ़ारसी या ईरानी (300 ई.पू.-800 ई.) भी इसमें लिखी जाती थी। सिकंदर के आक्रमण के समय के प्रसिद्ध बादशाह दारा के अनेक अभिलेख एवं प्रसिद्ध शिलालेख इसी लिपि में अंकित है। इन्हें दारा के कीलाक्षर लेख भी कहते हैं।

  • इस लिपि का विकास मेसोपोटामिया एवं वेबीलोनिया की प्राचीन सभ्य जातियों ने किया था।
  • भाषाभिव्यक्ति चित्रों द्वारा होती थी और चित्र मेसोपोटामिया में कीलों से नरम ईटों पर अंकित किए जाते थे।
  • तिरछी-सीधी रेखाएँ खींचने में सरलता होती थी, किंतु गोलाकार चित्रांकन में प्राय: कठिनाई आती थी।
  • साम देश के लोगों ने इन्हीं से अक्षरात्मक लिपि का विकास किया, जिससे आज की अरबी लिपि विकसित हुई।
  • मेसोपोटामिया और साम से ही ईरान वालों ने इसे प्राप्त किया था।
  • कतिपय स्रोत इस लिपि को फ़िनीश (फ़ोनीशियन) लिपि से विकसित मानते हैं।
  • दारा प्रथम (ई. पू. 521-485) के खुदवाए कीलाक्षरों के 400 शब्दों में प्राचीन फ़ारसी के रूप सुरक्षित हैं।
  • क्यूनिफ़ार्म लिपि या कीलाक्षर नामकरण आधुनिक है। इसे 'प्रेसिपोलिटेन' भी कहते हैं।
  • यह अर्ध वर्णात्मक लिपि थी, इसमें 41 वर्ण थे, जिनमें 4 परमावश्यक एवं 37 ध्वन्यात्मक संकेत थे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ